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झारखण्ड के प्रमुख जलप्रपात || jharkhand ke pramukh jalprapat || Major waterfalls of Jharkhand jharkhand gk , jharkhand waterfall , jharkhand news , jharkhand history , jharkhand geography , jharkhand polity झारखंड प्राकृतिक संसाधनों से भरा है; जंगलों के साथ-साथ खनिज। इसकी कई खदानें हैं और यह भारत के मुख्य खनिज उत्पादकों में से एक है। राज्य हरे संसाधनों से भी समृद्ध है, इसलिए इसका नाम 'वन की भूमि' है। झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के साथ अपनी सीमा साझा करता है, जिसमें कई पर्यटक आकर्षण हैं। उनमें से, झारखंड में झरने राज्य के पर्यटन में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वास्तव में, राजधानी रांची को 'झरनों के शहर' के रूप में जाना जाता है। इस सूची के माध्यम से आप झारखण्ड के प्रमुख जलप्रपात के बारे मै विस्तार पूर्वक पढ़ सकते है | झारखण्ड के प्रमुख जलप्रपात : 1. हुंडरू जलप्रपात किस नदी पर स्थित है? ans: स्वर्णरेखा 2. हुंडरू जलप्रापत किस जिले मे स्थित है? ans: राँची 3. हुंडरू जलप्रपात की ऊंचाई कितनी है ? ans: 243 फीट 4. झारखण्ड की सबसे ऊँची जलप्रपात कौन
झारखण्ड में अंग्रेजों का प्रवेश झारखण्ड में अंग्रेजों का आगमन सर्वप्रथम सिंहभूम क्षेत्र में हुआ। अंग्रेजों के सिंहभूम प्रवेश के समय यहाँ के प्रमुख राज्य धाल राजाओं के धालभूम, सिंह राजाओं के पोरहाट, हो लोगों के कोल्हान थें। फर्गुसन को सिंहभूम पर आक्रमण करने का काम 1767 ई. में सौंप गया। घाटशिला के महल पर अंग्रेजों का कब्जा 22 मार्च, 1767ई. को हुआ। धालभूम के राजा को फर्गुसन के सेना द्वारा पराजित करने के बाद जगन्नाथ ढाल को धालभूम का राजा बनाया गया। 1820 ई. में मेजर रफसेज के कोल्हान क्षेत्र में प्रवेश के बाद रोरो नदी के तट पर हो जनजाति एंव अंग्रेजी सेना में लड़ाई हुई, जिसमें अंग्रेज विजयी हुए। 1837 ई. में हो लोंगो ने आत्म-समर्पण किया और सीधे कम्पनी को कर देने के लिए तैयार हुए। 1837 ई. में कोल्हान क्षेत्र को एक नई प्रशासकीय इकाई बनाकर एक अंग्रेज अधिकारी के अधीन कर दिया गया। ईस्ट इंडिया कम्पनी को दीवानी प्राप्त होने के 72 वर्षों के बाद कोल्हान क्षेत्र पर अंग्रेेेजो का आधिपत्य स्थपित हो सका। पलामू पर अंग्रेजी आधिपत्य वर्ष 1771-72 में स्थापित हुआ। वर्ष 1770 ई. में सतबरवा के निकट चेतमा की लड़ाई
झारखण्ड के प्राचीन राजवंश सिंह राजवंश : काशीनाथ सिंह सिंहभूम के सिंह वंश की पहली शाखा के संस्थापक थे | दर्प नारायण सिंह सिंहभूम के सिंह वंश की दूसरी शाखा के संस्थापक थे | सिंहभूम को पोरहाट के सिंह राजाओ की भूमि कहा गया है | मान राजवंश : मानभूम के मान राजवंश का राज्य हजारीबाग एवं मानभूम में विस्तृत था | गोविंदपुर ( धनबाद ) में कवि गंगाधर द्वरा रचित प्रस्तर शिलालेख में मानभूम में मान राजवंश का उल्लेख है | हजरिभाग के दुधापनी नामक स्थान से प्राप्त गुप्त शिलालेख में मानभूम के मान राजवंश का उल्लेख है | रामगढ राज्य : रामगढ राज्य की स्थापना 1368 ई. में बगदेव सिंह द्वारा की गई थी | रामगढ राज्य के राजा हेमन्त सिंह ने अपनी राजधानी उर्दा से हटाकर बादम में स्थापित की | रामगढ राज्य के राजा दलेल सिंह ने अपनी राजधानी बादम से हटाकर रामगढ कर दी | रामगढ राज्य तेज सिंह ने अपनी शासन का संचालन इचाक से किया | कामाख्या नारायण सिंह रामगढ की गद्दी पर 1937 ई. में बैठा | रामगढ के राजा की मूल राजधानी रामगढ थी | सिसिया - उर्दा , बादम , रामगढ , इचाक तथा पदमा रामगढ राज्य की राजधानी का सही क्रम है | अन्य
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